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Sandhi | sandhi ke prakar | sandhi ke bhed | sandhi ke udaharan | संधि ( Reet )

Sandhi | sandhi ke prakar | sandhi ke bhed | sandhi udaharan | संधि ( Reet )

Sandhi | sandhi ke prakar | sandhi ke bhed | sandhi udaharan | संधि ( Reet )
Sandhi in hindi

दो वर्ण़ों के मेल से उत्पन्न ध्वनि-विकार को संधि कहते हैं। संधि संस्कृत का शब्द है। दो शब्द या पद जब एक-दूसरे के पास होते हैं तब उच्चारण की सुविधा के लिए पहले शब्द के अन्तिम व दूसरे शब्द के प्रारम्भिक अक्षर एक-दूसरे से मिल जाते हैं। संधि में जब दो अक्षर या वर्ण मिलते हैं तब उनकी मिलावट से ध्वनि में विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है। वर्ण़ों की यह विकारजन्य मिलावट ‘संधि‘ है तथा इस मिलावट को समझकर वर्ण़ों को अलग करते हुए पदों को अलग-अलग कर देना संधि-विच्छेद कहलाता है। संधि तीन प्रकार की होती है-

(1) स्वर संधि (2) व्यंजन संधि (3) विसर्ग संधि

Also read - Shabd vichar शब्द विचार (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, अव्यय इत्यादि )

(1) स्वर संधि

दो स्वरों के मेल से उत्पन्न विकार अथवा रूप-परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं। स्वर संधि पाँच प्रकार की होती है-

(i) दीर्घ संधि (ii) गुण संधि (iii) वृद्धि संधि (iv) यण् संधि (v) अयादि संधि।

(i) दीर्घ संधि - इस संधि में दो सवर्ण स्वर मिलकर अपना दीर्घ रूप धारण कर लेते हैं अर्थात् ‘आ‘, ‘ई‘, ‘ऊ‘ में परिवर्तन हो जाता है। जैसे-

अ/आ + अ/आ = आ (ा)

इ/ई + इ/ई = ई ( ी)

उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ ( ू )

ऋ + ऋ = ऋ

उदाहरण :

वाचन + आलय = वाचनालय

अन्न + अभाव = अन्नाभाव

गिरि + ईश = गिरीश      

मही + इन्द्र = महीन्द्र      

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी  

अभि + ईप्सा = अभीप्सा 

लघु + उत्तर = लघूत्तर    

अभि + इष्ट = अभीष्ट    

भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व       

महा + आशय = महाशय 

यथा + अर्थ = यथार्थ     

सेवा + अर्थ = सेवार्थ     

भाव + अर्थ = भावार्थ    

राम + अयन = रामायण  

चर + अचर = चराचर    

कपि + इन्द्र = कपीन्द्र    

वार्ता + आलाप = वार्तालाप

सत्य + आग्रह = सत्याग्रह

पितृ + ऋण = पितृण

भोजन + आलय = भोजनालय

भानु + उदय = भानूदय

पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश

मुनि + इन्द्र = मुनीन्द्र

देवी + इच्छा = देवीच्छा

कवि + इन्द्र = कवीन्द्र

चरण + अमृत = चरणामृत

गुरु + उपदेश = गुरूपदेश

शास्त्र + अर्थ = शास्त्रार्थ

परम + अणु = परमाणु

पर + अधीन = पराधीन

धर्म + अन्ध = धर्मान्ध

परम + अर्थ = परमार्थ

पुष्प + अंजलि = पुष्पांजलि

सु + उक्ति = सूक्ति

कुश + आसन = कुशासन

नव + आगत = नवागत

(ii) गुण संधि - ए, ओ, अर् में परिवर्तन हो जाता है। 

अ/आ + इ/ई = ए ( े)

अ/आ + उ/ऊ = ओ ( ा )

अ/आ + ऋ = अर्

उदाहरण :

देव + इन्द्र = देवेन्द्र       

देव + ऋषि = देवर्षि      

महा + ऋषि = महर्षि      

देव + ईश = देवेश        

सूर्य + उदय = सूर्योदय   

नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा     

मृग + इन्द्र = मृगेन्द्र       

हित + उपदेश = हितोपदेश

वार्षिक + उत्सव = वार्षिकोत्सव

मानव + उचित = मानवोचित

वीर + उचित = वीरोचित  

पाठ + उपयोगी = पाठोपयोगी

महा + इन्द्र = महेन्द्र

चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय

समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि

रमा + ईश = रमेश

नर + ईश = नरेश

प्राप्त + उदक = प्राप्तोदक

ज्ञान + इन्द्र = ज्ञानेन्द्र

सोम + इन्द्र = सोमेन्द्र

पर + ईश = परेश

राज + ईश्वर = राजेश्वर

सूर्य + ऊष्मा = सूर्योष्मा

पूर्व + उक्त = पूर्वोक्त।

(iii) वृद्धि संधि - ऐ, औ में परिवर्तन हो जाता है।      

अ/आ + ए/ऐ = ऐ ( ै)

अ/आ + ओ/औ = औ (ौ)

उदाहरण :

महा + ओजस्वी = महौजस्वी

महा + औषध = महौषध 

सदा + एव = सदैव   

तथा + एव = तथैव    

शुभ + एषी = शुभैषी   

वन + औषध = वनौषध 

सहसा + एव = सहसैव 

महा + औषधि = महौषधि 

एक + एक = एकैक

नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य

स्व + ऐच्छिक = स्वैच्छिक

पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा

महा + औदार्य = महौदार्य

प्र + औद्योगिकी = प्रौद्योगिकी

जल + ओक = जलौक

अपवाद-इसके अन्तर्गत कुछ अपवाद भी मिलते हैं। जहाँ संधि न होकर संयोग होता है। जैसे-

शुद्ध + ओदन = शुद्धोदन

बिम्ब + ओष्ठ = बिम्बोष्ठ

खर + ओष्ठ  = खरोष्ठ

दंत + ओष्ठ = दन्तोष्ठ

अधर + ओष्ठ = अधरोष्ठ

(iv) यण् संधि- य्, व्, र् में परिवर्तन हो जाता है।

इ/ई + असवर्ण स्वर (इ/ई के अलावा) = य्

उ/ऊ + असवर्ण स्वर (उ/ऊ के अलावा) = व्

ऋ + असवर्ण स्वर (ऋ के अलावा) = र्

नोट- (1) य्/व्/र् में दूसरे शब्द के प्रथम स्वर के अनुसार मात्रा लगती है।

(2) यण् संधि में अक्षर आधा रह जाता है। यदि आधे अक्षर के बाद य्/व्/्र् आते हैं तो वहाँ यण् संधि होने की सम्भावना होती है।

उदाहरण :

यदि + अपि = यद्यपि     

अति + अल्प = अत्यल्प  

मधु + आलय = मध्वालय

अति + आवश्यक = अत्यावश्यक 

अनु + एषण = अन्वेषण  

वि + अंजन = व्यंजन    

मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा  

सु + अस्ति = स्वस्ति     

वि + आयाम = व्यायाम   

प्रति + एक = प्रत्येक      

परि + अटन = पर्यटन    

वधू + आगमन = वध्वागमन

वि + अष्टि = व्यष्टि

अति + ऊष्म = अत्यूष्म

अनु + अय = अन्वय

पितृ + आदेश = पित्रादेश

धातु + इक = धात्विक

अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण

मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश

सु + अच्छ = स्वच्छ

अधि + आदेश = अध्यादेश

नि + ऊन = न्यून

गति + अवरोध = गत्यवरोध

मधु + आचार्य = मध्वाचार्य

प्रति + अर्पण= प्रत्यर्पण

वि + उत्पत्ति= व्युत्पत्ति।

(v) अयादि संधि- अय्, आय्, अव्, आव् में परिवर्तन हो जाता है।


ए + असवर्ण स्वर (ए/ऐ के अलावा) = अय

ऐ + असवर्ण स्वर (ए/ऐ के अलावा) = आय

ओ + असवर्ण स्वर (ओ/औ के अलावा) = अव

औ + असवर्ण स्वर (ओ/औ के अलावा) = आव

नोट : (1) पहले शब्द के अन्तिम व्यंजन में अ/आ की मात्रा लगती है तथा य्/व् में दूसरे शब्द के प्रथम स्वर के अनुसार मात्रा लगती है।

       (2) अ/आ की मात्रा सहित व्यंजन वाले वर्ण के बाद यदि य्/व् आते हैं तो वहाँ अयादि संधि होने की सम्भावना होती है।

उदाहरण :

नै + अक = नायक

नौ + इक = नाविक

पो + अन = पवन

शे + अन = शयन

ने + अन = नयन

चे + अन = चयन

भौ + अक = भावक

गो + ईश = गवीश

विधै + अक = विधायक

भौ + उक = भावुक

पौ + अन = पावन

भौ + इका = भाविका

भो + अन = भवन

श्रौ + अन = श्रावण

धौ + अक = धावक

धौ + इका = धाविका

शौ + अक = शावक

दै + इनी = दायिनी।

(2) व्यंजन संधि

व्यंजन के स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन संधि कहते हैं।

(i) अघोष (वर्गीय व्यंजन का प्रथम व्यंजन क्, च्, ट्, त्, प्) + सघोष (पंचमाक्षर व ‘ह‘ को छोड़कर) = सघोष (वर्गीय के तीसरे व्यंजन में)।

वर्गीय व्यंजन के प्रथमाक्षर (क्, च्, ट्, त्, प्) के बाद यदि सघोष व्यंजन (अनुनासिक/पंचमाक्षर व ‘ह‘ को छोड़कर) अर्थात् कोई स्वर/वर्गीय व्यंजन का तीसरा, चौथा व्यंजन/य, र, ल, व हो तो क्, च्, ट्, त्, प् अपने वर्ग के तीसरे व्यंजन (ग्, ज्, ड्, द्, ब्) में बदल जाते हैं।

उदाहरण :

वाक् + जाल = वाग्जाल

वाक् + ईश = वागीश

उत् + अय = उदय

जगत् + ईश = जगदीश

अच् + अन्त = अजन्त

दिक् + विजय = दिग्विजय

सत् + आचार = सदाचार

उत् + घाटन = उद्घाटन

भगवत् + गीता = भगवद्गीता

सत् + वंश = सद्वंश

जगत् + अम्बा = जगदम्बा

दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम

सत् + इच्छा = सदिच्छा

सत् + गति = सद्गति

षट् + आनन = षडानन

भवत् + ईय = भवदीय

षट् + अंग = षडंग

कृत + अन्त = कृदन्त

अप् + द = अब्द

उत् + घाटन = उद्घाटन

तत् + भव = तद्भव

(ii) यदि पहले शब्द का अन्तिम वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् या द् हो तथा परवर्ती शब्द का प्रथम वर्ण अनुनासिक (न, म) हो तो क्, च्, ट्, त्, प् या द् अपने वर्ग के पंचम व्यंजन (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) में बदल जाते हैं।

निरनुनासिक + अनुनासिक = अनुनासिक (पंचम व्यंजन)।

उदाहरण :

वाक् + मय = वाङ्मय

उद् + नत = उन्नत

अच् + अन्त = अजन्त

तद् + मय = तन्मय

षट् + मास = षण्मास

जगत् + नाथ = जगन्नाथ

श्रीमत् + नारायण = श्रीमन्नारायण

उत् + नत = उन्नत

पद् + नग = पन्नग

जगत् + माता = जगन्माता

उत् + नति = उन्नति

अप् + मय = अम्मय

षट् + मुख = षण्मुख

(iii) ‘म‘ संबंधी नियम (क) यदि प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण ‘म्‘ हो तथा परवर्ती शब्द का प्रथम वर्ण स्पर्शी व्यंजन (क से म) या य, र, ल, व, श, ष, स, ह आए तो म् का अनुस्वार या बाद वाले वर्ण के वर्ग का पंचमवर्ण हो जाता है। जैसे-

अहम् + कार = अहङ्कार/अहंकार,

सम् + गम = सङ्गम/संगम

पम् + चम = प×चम/पंचम

किम् + चित = किञ्चित्/किंचित्

सम् + तोष = सन्तोष/संतोष

सम् + कलन = सङ्कलन/संकलन

सम् + चय = स×चय/संचय

सम् + चालन = स×चालन/संचालन

अलम् + कार = अलङ्कार/अलंकार

सम् + कर = सङ्कर/संकर

तीर्थम् + कर = तीर्थङ्कर/तीर्थंकर

दिवम् + गत = दिवङ्गत/दिवंगत

चिरम् + जीव = चिर×जीव/चिरंजीव

दम् + ड = दण्ड/दंड

सम् + तुष्ट = सन्तुष्ट/संतुष्ट

सम् + देश = सन्देश/संदेश

सम् + धि = सन्धि/संधि

सम् + न्यासी = सन्न्यासी/संन्यासी

(ख) ‘म्‘ का मेल यदि य, र, ल, व्, श्, ष्, स् से हो तो ‘म्‘ सदैव अनुस्वार ही होता है; जैसे-

सम् + योग = संयोग

सम् + लाप = संलाप

सम् + शय = संशय

सम् + रक्षक = संरक्षक

सम् + विधान = संविधान

सम् + सार = संसार

(ग) ‘म्‘ के बाद ‘म‘ आने पर कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे-

सम् + मान = सम्मान

सम् + मति = सम्मति

विशेष-आजकल सुविधा के लिए पंचमाक्षर के स्थान पर प्रायः अनुस्वार का ही प्रयोग होता है।

(iv) ‘त्‘ सम्बन्धी नियम (क) त्/द् + श = च्छ।

यदि त्/द् के बाद श् हो तो त् - च् में तथा श - छ् में बदल जाता है।

त दन्त्य है और श तालत्य। श् के प्रभाव से त् अपना दन्त्य रूप छोड़कर तालव्य रूप च् प्राप्त कर लेता है और च् के प्रभाव से श् (महाप्राण) छ् में बदल जाता है। जैसे-

सत् + शासन = सच्छासन

सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

उत् + श्वास = उच्छ्वास

उत् + श्वसन = उच्छ्वसन

शरत् + शशि = शरच्छशि

जगत् + शान्ति = जगच्छान्ति

उत् + शृंखल = उच्छृंखल

(ख) ‘त्‘ के बाद यदि ल हो तो त्, ल् में बदल जाता है; जैसे-

उत् + लास = उल्लास

उत् + लेख = उल्लेख

तत् + लीन = तल्लीन

(ग) ‘त्‘ के बाद यदि ज्, झ् हो तो त्, ज में बदल जाता है; जैसे-

सत् + जन = सज्जन

विपत् + जाल = विपज्जाल

जगत् + जननी = जगज्जननी

उत् + झटिका = उज्झटिका

(घ) ‘त्‘ के बाद यदि ट्, ड् हो ता त्, ड् में बदल जाता है; जैसे-

बृहत् + टीका = बृहट्टीका

उत् + डयन = उड्डयन

(ङ) ‘त्‘ के बाद यदि च, छ हो तो त् का च् हो जाता है; जैसे-

उत् + चारण = उच्चारण

जगत् + छाया = जगच्छाया

उत् + चरित = उच्चरित

(च) ‘त्‘ के बाद यदि ह हो तो त् के स्थान पर द् और ह के स्थान पर ध् हो जाता है; जैसे-

तत् + हित = तद्धित

उत् + हत = उद्धत

उत् + हार = उद्धार

(v) मूर्धन्य व्यंजन ध्वनि-

(क) न् का मूर्धन्यीकरण - ण्। यदि मूर्धन्य इ, ऋ, र, ष के बाद न हो तो दन्त्य - न, मूर्धन्य - ण में बदल जाता है। जैसे-

परि + नय = परिणय

ऋ + न = ऋण

तृ + न = तृण

कृष् + न = कृष्ण

भूष + न = भूषण

परि + नाम = परिणाम

प्र + न = प्रण

प्र + नाम = प्रणाम

विष् + नु = विष्णु

पोष + न = पोषण

(ख) स का मूर्धन्यीकरण - ष यदि स से शुरू होने वाले व्यंजन के पहले इ या उ स्वर आते हैं तो दन्त्य-स, मूर्धन्य-ष में बदल जाता है। जैसे-

नि + सेध = निषेध

सु + सुप्त = सुषुप्त

वि + सम = विषम

अभि + सेक = अभिषेक

अनु + संगी = अनुषंगी

सु + स्मिता = सुष्मिता

(vi) व्यंजन आगम संधि-

(क) च् का आगम - यदि प्रथम शब्द के अन्त में स्वर हो तथा दूसरे शब्द के शुरू में छ व्यंजन आए तो छ से पहले च् का आगम हो जाता है। जैसे-

परि + छेद = परिच्छेद

आ + छादन = आच्छादन

स्व + छंद = स्वच्छंद

छत्र + छाया = छत्रच्छाया

वि + छेद = विच्छेद

प्रति + छाया = प्रतिच्छाया

अनु + छेद = अनुच्छेद

(ख) स्/ष् का आगम - यदि सम् उपसर्ग के बाद कृ धातु से बने शब्द आए तो दन्त्य - स का आगम हो जाता है। जैसे-

सम् + कृति = संस्कृति

सम् + करण = संस्करण

सम् + कृत = संस्कृत

सम् + कार = संस्कार

यदि परि शब्द के बाद कृ धातु से बने शब्द आए तो परि के इ स्वर के कारण मूर्धन्य - ष का आगम हो जाता है। जैसे-

परि + कृत = परिष्कृत

परि + करण = परिष्करण

परि + कार = परिष्कार

(vii) मूर्धन्य ष् के उपरान्त यदि त या थ आते हैं तो ये व्यंजन (त या थ) क्रमशः ट, ठ में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे-

आकृष् + त = आकृष्ट

उत्कृष् + त = उत्कृष्ट

पुष् + त = पुष्ट

सृष् + ति = सृष्टि

षष् + ति = षष्टि

इष्+ त = इष्ट

निकृष + त = निकृष्ट

तुष् + त = तुष्ट

षष् + थ = षष्ठ

(3) विसर्ग संधि

पहले शब्द के अंत में यदि विसर्ग हो, तो वह विसर्ग संधि कहलाती है।

(1) यदि विसर्ग से पहले ‘अ‘ हो तथा बाद में ‘अ‘ स्वर या अनुनासिक को छोड़कर कोई घोष व्यंजन (वर्गीय व्यंजन का तीसरा, चौथा, य, र, ल, व, ह) हो तो विसर्ग ‘ओ‘ में बदल जाता है।

अः + अ/अनुनासिक को छोड़कर घोष व्यंजन = ओ

यशः + अभिलाषा = यशोभिलाषा

मनः + ज = मनोज

सरः + वर = सरोवर

अधः + गामी = अधोगामी

परः + अक्ष = परोक्ष

वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध

यशः + दा = यशोदा

पुरः + हित = पुरोहित

यशः + गान = यशोगान

तपः + वन = तपोवन

उरः + ज = उरोज

(2) अः + अ/आ के अलावा कोई स्वर = र्।

अ/आ के अलावा कोई स्वरः + कोई घोष वर्ण = र्।

अन्तः + आत्मा = अन्तरात्मा

आयुः + वेद = आयुर्वेद

चतुः + आनन = चतुरानन

चतुः + मुख = चतुर्मुख

धनुः + धर = धनुर्धर

यजुः + वेद = यजुर्वेद

बहिः + भाग = बहिर्भाग

आशीः + वाद = आशीर्वाद

(3) यदि विसर्ग से पहले इ/उ हो तथा बाद में र हो तो इ/उ क्रमशः ई/ऊ में बदल जाते हैं।

्दुः + राज = दूराज  

निः + रोग = नीरोग

इ/उ + र = ई/ऊ

(4) यदि विसर्ग के पहले ‘अ‘ हो और विसर्ग के बाद इ/ए हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है।

अः + इ/ए = विसर्ग लुप्त

 

अतः + एव = अतएव    

 

यशः + इच्छा = यशइच्छा

 

(5) से (9)– ....... : + अघोष = श्/ष्/स्।

(5) अ/आ : + क्, ख्, प्, फ् = स् [भाः + कर - भास्कर]

(6) ....... : + च्, छ्, श् = श्

(7) ....... : + ट्, ठ्, ष् = ष्

(8) ....... : + त्, थ्, स् = स्

(9) इ/उ: + क्, ख्, प्, फ् = ष् [आविः + कार - आविष्कार]

उदाहरण (नियम- 5 – 9 से सम्बन्धित) :

अन्तः + चेतना = अन्तश्चेतना

आः + चर्य = आश्चर्य

दुः + फल = दुष्फल

नमः + ते = नमस्ते

पुनः + च = पुनश्च

निः + चय = निश्चय

यशः + शेष = यशश्शेष

चतुः + पथ = चतुष्पथ

वाचः + पति = वाचस्पति

धनुः + टंकार = धनुष्टंकार

अन्तः + संबंध = अन्तस्संबंध

नमः + कार = नमस्कार

निः + पाप = निष्पाप

कः + चित् = कश्चित्

 

अपवाद - विसर्ग से पहले अ हो और विसर्ग के बाद क् या प् हो तो कई बार विसर्ग में परिवर्तन नहीं होता है। जैसे-

अंतः + करण = अंतःकरण

पयः + पान = पयःपान

प्रातः + काल = प्रातःकाल

अधः + पतन = अधःपतन

अभ्यास हेतु प्रश्न

निम्न संधि शब्दों का विच्छेद कीजिये व संधि का नाम लिखिए-

1. उद्धत            2. कंठोष्ठ्य         3. अन्वय

4. किंचित्          5. घनानंद           6. एकैक

7. अधीश्वर        8. अभ्यागत         9. उच्छ्वास

10. जगद्बन्धु         11. तपोवन          12. अब्ज

13. दृष्टान्त          14. दुर्बल           15. तल्लय

16. नद्यूर्मि           17. अन्तर्राष्ट्रीय       18. अध्याय

19. अभ्यस्त         20. दुर्वासा            21. नयन

22. नवोढ़ा           23. इत्यादि            24. उद्धरण

25. उल्लंघन        26. निष्फल           27. दृष्टि

28. दुश्शासन       29. निर्दोष            30. चतुरंग

31. जलौघ          32. उद्देश्य            33. निर्झर

34. पऱीक्षा           35. भाविनी           36. भूदार

37. पित्रादि           38. रजःकण          39. विन्यास

40. शरच्चंद्र         41. संभव             42. यथेष्ट

43. सरोवर          44. संगठन           45. हरेक

46. समुद्रोर्मि         47. हरिश्चन्द्र         48. सहोदर

49. सप्तर्षि          50. मतैक्य

निम्न शब्दों की संधि कीजिये व संधि का नाम लिखिए-

51. भू + ऊर्ध्व      52. शुभ + इच्छु      53. काम + अयनी

54. सत्य + आग्रह  55. रमा + ईश        56. यज्ञ + उपवीत

57. लोक + एषणा  58. स्व + ऐच्छिक   59. रक्षा + उपाय

60. अत्र + एव      61. मधु + अरि       62. मातृ + आनन्द

63. नै + अक       64. भौ + अना       65. सत् + इच्छा

66. जगत् + नाथ    67. ऋक् + वेद      68. उत् + अय

69. तद् + पुरुष      70. उत् + मुख       71. सम् + क्रान्ति

72. उत् + नयन     73. उत् + चारण     74. सम् + गठन

75. धनम् + जय    76. जगत् + जननी   77. उद् + लिखित

78. सम् + यम      79. सम् + सर्ग       80. उद् + शृंखला

81. उत् + लेख     82. पद् + हति        83. प्रति + स्था

84. पुष् + त         85. परि + नय        86. नि + सिद्ध

87. अभि + सेक    88. निकृष् + त       89. अनु + छेद

90. विद्या + आलय  91. प्रति + छाया      92. सम् + कर्ता

93. परि + कृत      94. परः + अक्ष       95. आविः + भाव

96. परः + पर       97. नभः + मंडल     98. शिरः + धार्य

99. मनः + अनुकूल      100. अधः + वस्त्र

Answer Key – Sandhi

निम्नलिखित संधि शब्दों का विच्छेद कीजिए व संधि का नाम लिखिये-

1. उद्धत - उत् + हत                    व्यंजन सन्धि

2. कंठोष्ठ्य - कंठ + ओष्ठ्य           गुण सन्धि

3. अन्वय  - अनु + अय                यण् सन्धि

4. किंचित् - किम् + चित्                व्यंजन सन्धि

5. घनानंद - घन + आनन्द             दीर्घ सन्धि

6. एकैक - एक + एक                  वृद्धि सन्धि

7. अधीश्वर - अधि + ईश्वर            दीर्घ सन्धि

8. अभ्यागत - अभि + आगत           यण् सन्धि

9. उच्छ्वास - उत् + श्वास             व्यंजन सन्धि

10. जगद्बन्धु - जगत् + बन्धु              व्यंजन सन्धि

11. तपोवन - तपः + वन                 विसर्ग सन्धि

12. अब्ज - अप् + ज                    व्यंजन सन्धि

13. दृष्टान्त - दृष्ट + अंत                 दीर्घ सन्धि

14. दुर्बल - दुः + बल                    विसर्ग सन्धि

15. तल्लय - तत् + लय                  व्यंजन सन्धि

16. नद्यूर्मि -  नदी + ऊर्मि                यण् सन्धि

17. अन्तर्राष्ट्रीय - अन्तः + राष्ट्रीय        विसर्ग सन्धि

18. अध्याय - अधि + आय              यण् सन्धि

19. अभ्यस्त - अभि + अस्त             यण् सन्धि

20. आध्यात्मिक - आधि + आत्मिक     यण् सन्धि

21. नयन - ने + अन                     अयादि सन्धि

22. नवोढ़ा - नव + ऊढ़ा                 गुण सन्धि

23. इत्यादि - इति + आदि                यण् सन्धि

24. उद्धरण - उत् + हरण                व्यंजन सन्धि

25. उल्लंघन - उत् + लंघन             व्यंजन सन्धि

26. निष्फल - निः + फल                विसर्ग सन्धि

27. दृष्टि - दृष् + ति                      व्यंजन सन्धि

28. दुश्शासन - दुः + शासन             विसर्ग सन्धि

29. निर्दोष - निः + दोष                   विसर्ग सन्धि

30. चतुरंग - चतुः + अंग                 विसर्ग सन्धि

31. जलौघ - जल + ओघ                वृद्धि सन्धि

32. उद्देश्य - उत् + देश्य                 व्यंजन सन्धि

33. निर्झर - निः + झर                    विसर्ग सन्धि

34. पऱीक्षा - परि + ईक्षा                   दीर्घ सन्धि

35. भाविनी - भौ + ईनी                  अयादि सन्धि

36. भूदार - भू + उदार                    दीर्घ सन्धि

37. पित्राादि - पितृ + आदि                यण् सन्धि

38. रजःकण - रजः + कण              विसर्ग सन्धि

39. विन्यास - वि + नि + आस          यण् सन्धि

40. शरच्चंद्र - शरत् + चन्द्र              व्यंजन सन्धि

41. संभव -  सम् + भव                 व्यंजन सन्धि

42. यथेष्ट - यथा + इष्ट                 गुण सन्धि

43. सरोवर - सरः + वर                  विसर्ग सन्धि

44. संगठन - सम् + गठन                व्यंजन सन्धि

45. हरेक - हर + एक                    गुण सन्धि

46. समुद्रोर्मि - समुद्र + ऊर्मि             गुण सन्धि

47. हरिश्चन्द्र - हरिः + चन्द्र             विसर्ग सन्धि

48. सहोदर - सह + उदर                 गुण सन्धि

49. सप्तर्षि - सप्त + ऋषि                गुण सन्धि

50. मतैक्य - मत + ऐक्य                 वृद्धि सन्धि

51. भू + ऊर्ध्व  - भूर्ध्व             दीर्घ सन्धि

52. शुभ + इच्छु - शुभेच्छु          गुण सन्धि

53. काम + अयनी - कामायनी         दीर्घ सन्धि

54. सत्य + आग्रह  - सत्याग्रह         दीर्घ सन्धि

55. रमा + ईश - रमेश             गुण सन्धि

56. यज्ञ + उपवीत - यज्ञोपवीत        गुण सन्धि

57. लोक + एषणा - लोकैषणा         वृद्धि सन्धि

58. स्व + ऐच्छिक - स्वैच्छिक        वृद्धि सन्धि

59. रक्षा + उपाय - रक्षोपाय          गुण सन्धि

60. अत्रा + एव - अत्रौव            वृद्धि सन्धि

61. मधु + अरि - मध्वरि           यण् सन्धि

62. मातृ + आनन्द - मात्राानन्द        यण् सन्धि

63. नै + अक - नायक            अयादि सन्धि

64. भौ + अना - भावना           अयादि सन्धि

65. सत् + इच्छा - सदिच्छा          व्यंजन सन्धि

66. जगत् + नाथ - जगन्नाथ          व्यंजन सन्धि

67. ऋक् + वेद - ऋग्वेद           व्यंजन सन्धि

68. उत् + अय - उदय             व्यंजन सन्धि

69. तद् + पुरुष - तत्पुरूष          व्यंजन सन्धि

70. उद् + मुख - उन्मुख           व्यंजन सन्धि

71. सम् + क्रान्ति - सड्.क्रान्ति       व्यंजन सन्धि

72. उत् + नयन - उन्नयन           व्यंजन सन्धि

73. उत् + चारण - उच्चारण         व्यंजन सन्धि

74. सम् + गठन - सड्.गठन        व्यंजन सन्धि

75. धनम् + जय - धनंजय          व्यंजन सन्धि

76. जगत् + जननी - जगज्जननी       व्यंजन सन्धि

77. उत् + लिखित - उल्लिखित       व्यंजन सन्धि

78. सम् + यम - संयम            व्यंजन सन्धि

79. सम् + सर्ग - संसर्ग            व्यंजन सन्धि

80. उत् + शृंखल - उच्छृंखल        व्यंजन सन्धि

81. उद् + लेख - उल्लेख          व्यंजन सन्धि

82. पद् + हति - पद्धति            व्यंजन सन्धि

83. प्रति + स्था - प्रतिष्ठा           व्यंजन सन्धि

84. पुष् + त - पुष्ट              व्यंजन सन्धि

85. परि + नय - परिणय           व्यंजन सन्धि

86. नि + सिद्ध - निषिद्ध           व्यंजन सन्धि

87. अभि + सेक - अभिषेक         व्यंजन सन्धि

88. निकृष् + त - निकृष्ट           व्यंजन सन्धि

89. अनु + छेद - अनुच्छेद         व्यंजन सन्धि

90. विद्या + आलय - विद्यालय         दीर्घ सन्धि

91. प्रति + छाया - प्रतिच्छाया        व्यंजन सन्धि

92. सम् + कर्ता - संस्कर्ता          व्यंजन सन्धि

93. परि + कृत - परिष्कृत          व्यंजन सन्धि

94. परः + अक्ष - परोक्ष             विसर्ग सन्धि

95. आविः + भाव - आविर्भाव        विसर्ग सन्धि

96. परः + पर - परस्पर           विसर्ग सन्धि

97. नभः + मंडल - नभोमंडल        विसर्ग सन्धि

98. शिरः + धार्य - शिरोधार्य         विसर्ग सन्धि

99. मनः + अनुकूल - मनोनुकूल        विसर्ग सन्धि

100. अधः + वस्त्रा -  अधोवस्त्रा        विसर्ग सन्धि

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