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Structure of matter and Chemical substance ( पदार्थ की संरचना और रासायनिक पदार्थ )

Structure of matter and Chemical substance ( पदार्थ की संरचना और रासायनिक पदार्थ )


 पदार्थ

  • द्रव्य (पदार्थ) Matter : ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुएं द्रव्य (पदार्थ) की बनी होती है। द्रव्य अत्यन्त सूक्ष्म कणों से मिलकर बना होता है, जिसे अणु (Molecule) कहते हैं।
  • नोट-द्रव्य (पदार्थ) की इकाई - अणु (Molecule)।
  • इन अणुओं के मध्य लगने वालो आकर्षण बल के आधार पर पदार्थ की तीन मुलभूत अवस्थाएं होती हैं-

 1. ठोस  2. द्रव     3. गैस

  • पदार्थ की चौथी अवस्था - प्लाज्मा।
  • पदार्थ की पांचवी अवस्था - बेक (BEC)।
  • अणु (Molecule) : द्रव्य का सूक्ष्मतम कण जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है। अणु कहलाता है।
  • अणु दो या दो से अधिक परमाणुओं से मिलकर बना होता है। ये परमाणु एक ही प्रकार के या एक से अधिक प्रकार के हो सकते हैं।
  • अणु रासायनिक अभिक्रिया में सामान्यतः भाग नहीं लेता है।

 Ex. : H2O, CH4, NH3, O2, N2, H2 इत्यादि।

  • परमाणु (Atom) : A + Tom (जिसे आगे विभाजित नहीं कर सकते), खोजकर्त्ता- जॉन-डॉल्टन।

  • परमाणु तीन मूलभुत कणों से मिलकर बना होता है- (i) Electron – J.J. Thomson (1897), (ii) Proton – Ruther ford-II (Goldstein - 1911), (iii) Neutron – James-Chedvick (1932)।
  • परमाणु भार = तुल्यांकी भार × संयोजकता।
  • अणु भार = 2 ×  वाष्प घनत्व।

 किसी अणु का भार उसके अणुसूत्र में उपस्थित सभी परमाणुओं के परमाणु भारों का योग होता है।

  • सामान्य दाब व ताप पर 22.4 लीटर आयतन वाली गैस का भार उसके ग्राम अणुभार के बराबर होता है। अणुओं की संख्या 6.02 × 1023 होती है। इसे एवोगाद्रो संख्या कहते हैं। किसी तत्व के 6.02 × 1023 परमाणुओं का भार उस तत्व के ग्राम परमाणु भार के बराबर होता है तथा यह मात्रा तत्वों का एक मोल कहलाती है।
  • मोल कोई संख्या नहीं है अपितु यह पदार्थ की मात्रा है जिसे सहति या आयतन के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • किसी तत्व के एक मोल का अर्थ उसके 6.02 × 1023 परमाणुओं के द्रव्यमान से होता है।
  • किसी अणु का एक ग्राम अणु द्रव्यमान उसके 6.02 × 1023 अणुओं के द्रव्यमान को व्यक्त करता है।
  • एक मोल गैस का आयतन सामान्य ताप एवं दाब पर 22.4 लीटर होता है।

तत्त्व

  • वे शुद्ध पदार्थ जो एक ही प्रकार के परमाणुओं से निर्मित होते हैं तत्त्व कहलाते हैं। परमाणु तत्त्व की सुक्ष्मतम ईकाई होती है।
  • तत्त्व की प्रथम परिभाषा फ्रांस के एंटोनीलॉरेंट लवाइजिए ने प्रस्तुत की जिसके अनुसार तत्त्व पदार्थ का वह मूल रूप है जिसे रासायनिक प्रतिक्रिया द्वारा अन्य सरल पदार्थ़ों में नहीं बांट सकते।
  • तत्त्व के प्रतीक बर्जीलियस ने प्रस्तुत किए। तत्त्व शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग रॉबर्ट बोयल ने किया। तत्त्वों के संकेत को अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षर से प्रदर्शित करते हैं। जैसे- H, He, Li, Be, B, C, N, O, F, Ne, Na (Natriam), Ng, Al, Si, P, S, Cl, Ar, K (Kalium), Ca.
  • कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतीक - लौहा (Fe-फेरम), चांदी (Ag–अर्जेन्टम), लेड या सीसा (Pb–प्लम्बम), पारा या मर्करी (Hg–हाइड्रेजायरम), तांबा (Cu–क्यूप्रम), एंटिमनी (Sb–स्टबिन), टंगस्टन (W–वूलफ्रेम)
  • वर्तमान में तत्त्वों की संख्या 114 (92-प्राकृतिक व शेष कृत्रिम) है। इनमें से 86 धातु, 22 अधातु, 6 उपधातु है।
  • कुल 11 तत्त्व कमरे के ताप पर गैस है।
  • आवर्त सारणी बनाने का प्रथम प्रयास डोबेराइनर ने 1817 में किया। इन्होंने तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में रखकर डोबेराइनर त्रिक का निर्माण किया।
  • 1866 में न्यूलैंड ने अष्टक नियम के द्वारा आवर्त सारणी बनाने का दूसरा प्रयास किया।
  • 1872 में रूसी वैज्ञानिक मेंडलिफ ने 63 तत्वों को उनके द्रव्यमान संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया। मेंडलिफ के नियम के अनुसार तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उन तत्वों के द्रव्यमान संख्या के आवर्तीफलन होते हैं।
  • सर्वमान्य आवर्त सारणी का निर्माण 1913 में मोजले के द्वारा किया गया। इन्होंने तत्वों को परमाणु संख्या के आधार पर 18 ऊर्ध्व स्तम्भ/वर्ग (Group) तथा 7 क्षैतिज पंक्तियां/आवर्त (Periods) में वर्गीकृत किया। इनके अनुसार तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांक के आवर्ती फलन होते हैं।
  • वर्ग में आने वाले तत्वों के बाह्य कोष के इलेक्ट्रॉनीय विन्यास समान होते हैं। इसी कारण इनके रासायनिक गुण भी समान होते हैं।

आवर्त सारणी में गुणों की आवर्तिता (Periodicity in Properties)

  • जब आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ते परमाणु क्रमांकों के क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तो समान गुणों वाले तत्व निश्चित अन्तराल के बाद पुनरावर्तित होते हैं। इस प्रकार के गुण को आवर्तिता कहते हैं।

 आवर्तिता का मुख्य कारण बाह्यतम कोश के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की पुनरावृत्ति है।

 आवर्ती गुण -

 1. परमाणु आकार (Atomic Size) - एक वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु का आकार बढ़ता है तथा आवर्त में बायें से दायें ओर जाने पर परमाणु आकार कम होता है।

 2. आयनन विभव (Ionisation Potential) - किसी उदासीन गैसीय परमाणु के बाह्यतम कोश से इलेक्ट्रॉन पृथक करने हेतु आवश्यक ऊर्जा प्रथम आयनन ऊर्जा (विभव) कहलाती है।

 वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर इसका मान कम होता है तथा आवर्त में बायें से दायें जाने पर इसका मान बढ़ता है। सर्वाधिक आयनन विभव हिलियम का तथा न्यूनतम सीजियम का होता है।

 3. विद्युत ऋणता (Electro Negativity) - अणु में किसी परमाणु द्वारा बन्धित इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित करने की क्षमता को विद्युत ऋणता कहते हैं।

  किसी आवर्त में बायें से दायें जाने पर तत्वों की विद्युत ऋणता के मानों में नियमित वृद्धि होती है जबकि एक ही वर्ग में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर विद्युत ऋणता के मान में कमी होती जाती है। सर्वाधिक विद्युत ऋणता फ्लुओरीन की तथा न्यूनतम विद्युत ऋणता सीजियम की होती है।

 4. इलेक्ट्रॉन बन्धुता (Electron Affinity) - उदासीन गैसीय परमाणु के बाह्यतम कोश में एक इलेक्ट्रॉन जोड़ने पर मुक्त हुई ऊर्जा इलेक्ट्रॉन बन्धुता कहलाती है।

  एक ही आवर्त में बायें से दायें जाने पर इलेक्ट्रॉन बन्धुता के मान में वृद्धि होती है जबकि एक ही वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर इलेक्ट्रॉन बन्धुता के मान में कमी होती है।

  अर्द्धपूरित एवं पूर्ण पूरित कक्षकों का स्थायित्व अधिक होने के कारण अपवाद स्वरूप इलेक्ट्रॉन बन्धुता के मान कम होते हैं। उत्कृष्ट गैसों के इलेक्ट्रॉन बन्धुता के मान शून्य अथवा ऋणात्मक होते हैं। सर्वाधिक इलेक्ट्रॉन बन्धुता क्लोरीन (348.7) , फ्लोरीन (320) की तथा न्यूनतम इलेक्ट्रॉन बन्धुता अक्रिय गैसों की होती है।

धातु

  • इलेक्ट्रॉन त्याग कर धन आयन देते हैं। ताप व विद्युत के सूचालक, चमकीले, तन्य (Ductile), आधातवर्ध्य (Malleable) होते हैं। ये कठोर होते हैं। अपवाद स्वरूप पारा द्रव एवं सोडियम, पोटेशियम नरम होते हैं। सोडियम को मिट्टी के तेल में रखा जाता है।
  • धातु के ऑक्साइड क्षारीय प्रकृति के होते हैं। धातु अम्लों से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस देते हैं। जैसे- लौहा, तांबा, एल्युमिनियम इत्यादि।

अधातु

  • इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके ऋण आयन देते हैं। विभिन्न रंगों के होते हैं। अन्य गुण धातुओं के विपरित होते हैं। जैसे हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, आयोडिन, कार्बन, क्लोरीन इत्यादि।
  • ब्रोमीन द्रव अवस्था में पाया जाने वाला एकमात्र अधातु है। फास्फोरस को जल में रखा जाता है।

उपधातु

  • जैसे- बोरोन (B), सिलिकन (Si), जर्मेनियम (Ge), आर्सेनिक (As), ऐण्टीमनी, टेलुरियम (Te) पॉलोनियम (Po), ऐस्टेटिन (At)

1. हाइड्रोजन-(i) आवर्त सारणी का प्रथम तत्व (ii) सबसे सरलतम तत्व (iii) ब्रह्माण्ड में सर्वाधिक पाया जाने वाला तत्व (iv) न्यूट्रॉन रहित तत्व (v) भविष्य का इऔधन (vi) आवारा तत्व (vii) सर्वाधिक आयनन विभव एवं विशिष्ट ऊष्मा वाला तत्व (viii) सबसे हल्का तत्व (प्रकृति में) (ix) सबसे हल्की गैस (Lightess Gas) (x) जिस तत्व के समस्थानिकों को पृथक् नाम दिये गये।

2. नाइट्रोजन - वायुमण्डल में मौजूद सर्वाधिक तत्व।

3. ओजोन - वायु में सर्वाधिक निष्क्रिय गैस।

4. लीथियम - सबसे हल्की धातु।

5. एल्यूमिनियम - पृथ्वी (भूगर्भ) में सर्वाधिक पायी जाने वाली धातु।

6. ऑक्सीजन - पृथ्वी में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व, मानव शरीर में सर्वाधिक।

7. सिलिकॉन - ऑक्सीजन के पश्चात् सर्वाधिक तत्व।

8. Mercury (पारा) – द्रव धातु (केवल यही है)।

9. Osmium (ओस्मियम) – सबसे भारी तत्व/धातु।

10. Sodium – अत्यन्त क्रियाशील, अतः केरोसिन के तेल में सुरक्षित।

11. Neon – Airport पर उतरते वायुयानों को संकेत देने में, विज्ञापनों (चमकिले) में इसी का प्रयोग।

12. Florine – सर्वाधिक विद्युत ऋणता वाला तत्व।

13. Chlorine  – सर्वाधिक इलेक्ट्रॉन बन्धुता वाला तत्व।

14. Helium – सबसे हल्की निष्क्रिय गैस।

15. टंगस्टन (W.) – सर्वाधिक गलनांक वाली धातु/तत्व।


16. मर्करी (पारा) – सबसे कम गलनांक वाली धातु (– 39ºC)।

17. टाइटेनियम - रणनीतिक धातु (Strategic metal), Metal fo Future।

18. टेक्नीशियम - प्रथम मानव निर्मित तत्व (प्र.क. 43) है।

19. स्केन्डियम - सबसे हल्की संक्रमण धातु।

20. सीजियम - सबसे बड़ा परमाणु आकार वाला तत्व।

यौगिक

  • इनमें परमाणु का अनुपात निश्चित होता है। यौगिक का छोटे से छोटा कण अणु होता है। सभी अणु गुणों में समान होते हैं। मूल तत्वों के गुण विद्यमान नहीं होते हैं। यौगिक का संगठन सदैव स्थाई होता है जिसे केवल रासायनिक या वैद्युत रासायनिक विधि से अलग कर सकते हैं। जैसे शक्कर, नमक, जल, मिथेन इत्यादि।

मिश्रण

  • मिश्रण का संगठन परिवर्तनीय होता है। जिसे भौतिक विधियों द्वारा सुगमता से अलग कर सकते हैं। ये दो प्रकार के होते है-

 1. समांगी (Homogeneous) – इस मिश्रण में सभी जगह एक समान संगठन रहता है। जैसे- वायु में ऑक्सीजन व नाइट्रोजन का, जल में चीनी व नमक का विलयन, कार्बनडाई सल्फाइड में सल्फर इत्यादि।

 2. विषमांगी (Heterogeneous) - संगठन में सभी जगह अणु एक समान उपस्थित नहीं होते हैं। जैसे- नमक व लौहे की छिलन, रेत व सल्फर का मिश्रण, रूधिर, चीनी व नमक का मिश्रण, लकड़ी, तेल में जल।

पदार्थ़ों की अशुद्धियों का पृथक्करण

  • निथारना व छानने की विधि द्वारा हल्की व अघुलनशील अशुद्धियों को दूर कर सकते हैं। जैसे- जल व तेल को अलग करना, नमक व रेत को अलग करना, चाय व जल में से कचरा छानना।
  • वाष्पीकरण की विधि द्वारा जल में से सोडा, नमक व शक्कर को अलग कर सकते हैं।
  • चुम्बकीय विधि से मिश्रण में से लौह पदार्थ़ों को अलग किया जा सकता है।
  • ऊर्ध्वपातन (Sublimation) : कुछ ठोस पदार्थ जिन्हें गर्म करने पर द्रव अवस्था में आने के बजाय सीधे वाष्प में बदल जाते हैं और वाष्प को पुनः ठण्डा करने पर ठोस में परिविर्तत हो जाते हैं। ऐसे पदार्थ़ों को ‘एब्लीमेट पदार्थ‘ कहते हैं तथा यह घटना ‘ऊर्ध्वपातन‘ कहलाती है। इस विधि द्वारा कपूर, नेफ्थेलीन, आयोडिन, नौसादर, बेन्जोइक अम्ल, एन्थ्रासीन आदि के अन्य पदार्थ़ों के साथ मिश्रण से पृथक् किये जाते हैं।
  • क्रिस्टलन (Crystallisation) : यह विधि मिश्रण से अकार्बनिक ठोसों को पृथक् करने हेतु प्रयोग में ली जाती है। यह विधि वाष्पीकरण से उत्तम विधि है।

              मिश्रण + विलायम ¾→ गर्म करने पर इसी अवस्था में छाना जाता है (विलयन ठण्डा करने पर क्रिस्टल बन जाते हैं)

              जैसे - समुद्री जल से नमक प्राप्त करना। अशुद्ध नमूने से फिटकरी पृथक् करना, कॉपर सल्फेट को पृथक करना।

  • प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation) – उन दो द्रवों को पृथक् करते हैं जिनके क्वथनांकों में अंतर बहुत कम होता है। कच्चे तेल से Petrol, Diesel, Karosene आदि पृथक् करते हैं।
  • आसवन (Distillation) – जब अन्तर बहुत अधिक होता है। मिश्रण → गर्म कर वाष्प को पुनः ठण्डा कर देते हैं। जैसे - आसुत जल प्राप्त करना।
  • एक ही प्रकार के विलायक में घुले हुए अशुद्धि को पृथक करने के लिए कोमेटोग्राफी विधि का उपयोग करते हैं। जैसे- डाई/रंजक में से रंगों को अलग करना, प्राकृतिक रंगों से वर्णक अलग करना, रक्त से नशीले पदार्थ़ों को अलग करना।
  • अपकेन्द्रण विधि - इसमें द्रव को तेजी से घुमाने पर भारी कण नीचे बैठ जाते हैं व हल्के कण ऊपर रह जाते हैं। जैसे- प्रयोगशाला में रक्त व मूत्र की जांच करना, डेयरी व घर में क्रीम से मक्खन निकालना, वॉशिंग मशीन में कपड़ों को निचोड़ना।
  • भूसे से गेहूँ के दानों को थ्रेसिंग के द्वारा (हार्वेस्टर मशीन), फटक कर (विनोइंग) अलग कर सकते हैं।

रसायनिक सूत्र

  • परमाणुओं की संयोग करने की क्षमता को संयोजकता (Valency) कहते हैं।
  • हाइड्रोजन परमाणु की संयोजकता को एक आधार मान कर अन्य तत्त्वों की संयोजकता ज्ञात करते हैं। जो तत्त्व हाइड्रोजन से संयोग नहीं करते उनकी संयोजकता उनके द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने या ग्रहण करने की संख्या के आधार पर ज्ञात करते हैं।
  • किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या = 2n2
  • जिन परमाणुओं की बाह्यतम कक्षा में 8 इलेक्टॉन होते हैं। वे स्थायी होते हैं तथा किसी अन्य परमाणु से संयोग नहीं करते।
  • परमाणु अपनी बाह्यतम कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन पूर्ण करने के लिए इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान अथवा साझा करते हैं। परमाणु इलेक्ट्रॉन त्यागने पर धन आवेशित व इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने पर ऋण आवेशित हो जाता है।
  • ऋणायन (Anion) के पीछे आईड जोड़ते हैं। जैसे - क्लोराइड (Cl–), ऑक्साइड (O–2), सल्फाइड (O–2), नाइट्राइड (N–3)
  • धातु से प्राप्त मूलक क्षारिय मूलक व अधातु से प्राप्त मूलक अम्लीय मूलक कहलाते हैं। कुछ आयनों में एक से अधिक प्रकार के परमाणु पाये जाते हैं। उन्हें यौगिक मुलक कहते हैं। मूलकों पर उपस्थित आवेश संख्या उनकी संयोजकता को प्रकट करती है।

परिवर्तनशील संयोजकता (Variable valency)

  • कम संख्या वाली संयोजकता के लिये अस अनुलग्न तथा अधिक संख्या वाली संयोजकता के लिये इक (ic) अनुलग्न प्रयोग करते हैं।

रासायनिक बंध -

  • बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉन की संख्या आठ प्राप्त करने के प्रयास में तत्त्वों की रासायनिक क्रियाशीलता या रासायनिक बंधनता होती है।
  • तत्त्वों में यह रासायनिक बंधन दो प्रकार से संभव है-

 1. परमाणुओं द्वारा इलेक्ट्रॉन के पूर्ण आदान-प्रदान से [आयनिक आबन्ध (Ionic or Electrovalent Bond)]

 2. परमाणुओं द्वारा इलेक्ट्रॉनों के साझे से

 इलेक्ट्रॉन का साझा दो प्रकार से संभव है- 1. साझे के इलेक्ट्रॉन दोनों परमाणुओं से समान संख्या में प्राप्त हों। [सहसंयोजक बंध (Covalent Bond)]  2. साझे के लिए इलेक्ट्रॉन एक परमाणु से ही प्राप्त हो। [उपसहसंयोजक बंध (Coordinate Bond)]

आयनिक बंध -

  • यह बंध विद्युत धनी व विद्युत ऋणी तत्वों के परमाणुओं के मध्य बनता है। धनावेशित व ऋणावेशित आयन के मध्य स्थित वैद्युत आकर्षण बल कार्य करता है। जिससे दोनों आयन साथ-साथ बंधे रहते हैं व उनके मध्य आयनिक या वैद्युत संयोजक बंध बन जाता है। ऐसे यौगिक आयनिक या वैद्युत संयोजी योगिक कहलाते हैं। आयनिक बंध बनने के लिए यह आवश्यक है कि विद्युत धनी (Cation) तत्त्व का आयनन विभव निम्न व विद्युत ऋणी (Anion) तत्त्व की इलेक्ट्रॉन बंधुता उच्च होनी चाहिए।
  • आयनिक यौगिक कठोर व क्रिस्टलीय होते हैं। इनके गलनांक व

सामान्य विद्युत धनात्मक मूलक






सामान्य विद्युत ऋणात्मक मूलक







क्वथनांक प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बल के कारण अधिक होते हैं। ये धुवीय विलायक जैसे जल में विलय तथा अधुवीय विलायक जैसे कार्बन टेट्रा क्लोराइड, बेंजिन में अविलय होते हैं। ये गलित अवस्था में वैद्युत चालक तथा ठोस अवस्था में कुचालक होते हैं।

सहसंयोजक बंध -

  • जब दो विद्युत ऋणी तत्वों के परमाणु एक-दूसरे के निकट आते हैं तो उनमें इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण संभव नहीं होता। ऐसी परिस्थिति में परमाणु अपने कोश में आठ इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने के लिये इलेक्ट्रॉन का साझा करते हैं। दोनों परमाणु समान संख्या में बाह्य कोश के इलेक्ट्रॉन देकर साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म बनाते हैं और प्रत्येक परमाणु साझा कर निकटतम अक्रिय गैस का विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। इस तरह बनने वाले बन्ध को सहसंयोजक बन्ध व बनने वाले यौगिक को सहसंयोजक यौगिक कहते हैं। साझे में भाग लेने वाले इलेक्ट्रॉन की संख्या उस तत्व की सहसंयोजकता कहलाती है। दो परमाणुओं के मध्य एक इलेक्ट्रॉन युग्म के साझे से एकल सहसंयोजक बन्ध बनता है।
  • सहसंयोजक यौगिकों में अणुओं के मध्य दुर्बल वान्डर वाल बल उपस्थित होने के कारण यह सामान्य ताप व दाब पर गैसीय अथवा द्रव अवस्था में होते हैं। कुछ सहसंयोजक यौगिक ठोस भी होते हैं। जैसे- हीरा, ग्रेफाइट, गंधक
  • यह क्रिस्टलीय व अक्रिस्टलीय दोनों ही संरचना दर्शाते हैं। इनके गलनांक व क्वथनांक कम होते हैं। ये विद्युत के कुचालक होते हैं तथा इनकी प्रकृति अधुव्रीय होने के कारण ये बेंजिन व कार्बन टेट्रा क्लोराइड में विलय तथा धुवीय विलायक जैसे जल में अविलय होते हैं।

उपसहसंयोजक बन्ध

  • जब इलेक्ट्रॉन युग्म साझे के लिये अणु के एक परमाणु द्वारा दिया जाये तो परमाणुओं के मध्य उप सहसंयोजक बन्ध बनता है। इस इलेक्ट्रॉन युग्म पर दोनों परमाणुओं का समान अधिकार होता है। इलेक्ट्रॉन युग्म देने वाले परमाणु को दाता तथा दूसरे परमाणु को ग्राही कहा जाता है। इसे तीर के संकेत द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है।

अणुसूत्र-

  • अणुसूत्र अणु में उपस्थित परमाणुओं की वास्तविक संख्या को प्रदर्शित करता है।
  • अणुसूत्र से हमें पदार्थ का नाम, अव्यव तत्व का ज्ञान, परमाणुओं की संख्या, अणुभार, अणुओं की संख्या ज्ञात होती है।
  • सामान्यतः अकार्बनिक यौगिकों के अणुसूत्र उनके मूलकों के प्रतीकों व उनकी संयोजकता की सहायता से ज्ञात किये जाते हैं। जब यौगिक बनता है तो तत्व अपनी संयोजकता के व्युतक्रम अनुपात में संयोग करते हैं।

मूलानुपाती सूत्र (Empirical Formula) -

  • वह सूत्र जो पदार्थ के एक अणु में उपस्थित परमाणुओं के सरल अनुपात को प्रदर्शित करता है, मूलानुपाती सूत्र कहलाता है। एक मूलानुपाती सूत्र कई यौगिकों का हो सकता है। जैसे- CH2O निम्न यौगिकों का मूलानुपाती सूत्र है - फारमेल्डिहाईड (HCHO)  , ऐसिटीक अम्ल (CH3COOH), ग्लूकोज (C6H12O6)

संरचना सूत्र (Structure Formula) -

  • यौगिक या तत्त्वों के अणु में उपस्थित परमाणु के मध्य बंधन को प्रदर्शित करने वाला सूत्र संरचना सूत्र कहलाता है।

 जैसे-


Chemicals - Used in Daily Life




रासायनिक समीकरण -

  • रासायनिक समीकरण की सहायता से रासायनिक अभिक्रिया को दर्शाया जाता है।  इसमें भाग लेने वाले पदार्थ को अभिकारक तथा प्राप्त होने वाले पदार्थ को क्रिया फल कहते हैं।
  • अभिकारक व क्रियाफल में परमाणुओं की संख्या यदि समान हो तो ऐसा समीकरण संतुलित समीकरण कहलाता है। ऐसे समीकरण में अभिकारकों का कुल भार उत्पादों के कुल भार के बराबर होता है। क्योंकि पदार्थ नष्ट नहीं होता है।
  • रासायनिक समीकरण से अभिक्रिया में भाग लेने वाले तत्व या यौगिकों के अणुओं की संख्या ज्ञात होती है। अभिकारक व उत्पाद के भारों की भी जानकारी होती है। उत्पादों की मदद से संयोजकता की जानकारी भी प्राप्त होती है।
  • रासायनिक अभिक्रियाओं में अभिकारक व उत्पादों की भौतिक अवस्थाओं को कोष्ठक में लिखकर प्रदर्शित करते हैं जैसे-

 (s) = Solid (ठोस)

 (l) = Liquid (द्रव)

 (g) = gas (गैस)

 (aq) = Aquous Solution (जलीय विलयन)

  • क्रिया में बनने वाले अवक्षेप (Precipitate) को (\downarrow) चिन्ह तथा गैसीय पदार्थ को (\uparrow) चिन्ह से प्रदर्शित करते हैं।
  • अभिक्रिया को पूर्ण करने के लिये आवश्यक परिस्थितियों को तीर के निशान के ऊपर व नीचे लिखा जाता है।
  • अभिक्रिया की गति तथा पूर्ण होने के समय का बोध नहीं होता है।

कार्बन

  •  कार्बन चतुसंयोजी तत्त्व है। जिसकी समचतुषफलकीय ज्यामिती होती है तथा प्रत्येक संयोजकता के मध्य 1090 28' का कोण होता है।

कार्बन के ऑक्साइड

  •  कार्बनिक यौगिक (कोयल, पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन) के दहन (Combustion) व ऑक्सीकरण से उसमें उपस्थित कार्बन वायुमण्डल की ऑक्सीजन से क्रिया करके कार्बन के ऑक्साइड बनाता है।

कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO)

  • ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा में कार्बन के दहन से CO बनता है।
  • यह गैस जल में अल्पविलय, रंगहीन, मीठी गंधयुक्त विषैली गैस है। मोटर गाड़ियों के धुएं से निकलने वाली यह गैस मनुष्य स्वास्थ्य को सर्वाधिक हानि पहुंचाती है।
  • कार्बन मोनो ऑक्साइड का उपयोग रंजक या डाइ उद्योग में, धातुओं के शुद्धिकरण में, भाप अंगार गैस बनाने में, वायु अंगार गैस बनाने में करते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)

  • ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में कार्बन के दहन से यह गैस बनती है। कार्बन डाई ऑक्साइड गैस श्वसन, दहन, किण्वण की क्रियाओं में भी उत्पन्न होती है।
  • यह गैस गुफाओं, खानों, दलदली क्षेत्रों, कुओं, चूने के भट्टो के निकट अधिक मात्रा में पायी जाती है।
  • यह धातु के कार्बोनेट व बाईकार्बोनेट की अम्लों के साथ क्रिया द्वारा भी बनाई जा सकती है। (अग्निशामक यंत्रों में)

 गुण :-

 - यह अज्वलनशील, रंगहीन, गंधहीन, जल में अल्प विलेय, वायु से भारी गैस है।

 - यह अम्लीय प्रकृति की होती है व जल में घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है।

 - यह चूने के पानी में प्रवाहित करने पर चूने के पानी को दूधिया कर देती है।

 - यह क्षार के जलीय विलयन में प्रवाहित करने पर उनके द्वारा अवशोषित हो जाती है। (2NaOH+CO2→ Na2CO3 + H2O)

 उपयोग :-

 - शीतल पेय व सोडा वाटर बनाने में।

 - शुष्क बर्फ के रूप में वस्तुओं को ठंडा करने में।

 - सोडियम कार्बोनेट व कैल्सियम कार्बोनेट बनाने में।

 - अयस्कों के शोधन, आग बुझाने, प्रकाश संश्लेषण में।

 - हरित गृह से शीत प्रदेशों में सब्जियों व फलों के लिए तापमान उपयुक्त बनाने में।

भूमंडलीय तापन (Global waming)/ग्रीन-हाऊस-इफेक्ट (हरित गृह प्रभाव)–

  • हरित गृह प्रभाव तापीय वैश्वीकरण (Global warming) के कारण पूरे विश्व के वातावरण का तापमान बढ़ रहा है। इसे ही तापीय वैश्वीकरण (ग्लोबल-वार्मिंग) कहते हैं।
  • इस प्रभाव हेतु उत्तरदायी गैसों को हरित गृह गैसें (ग्रीन-हाऊस) कहते हैं। ये सूर्य से आने वाली लघु विकिरणों (अधिक आवृत्ति) को पार जाने देते हैं लेकिन पृथ्वी सतह से टकराकर पुनः अन्तरिक्ष की ओर प्रस्थान पार्थिव विकिरणों को अवशोषित कर लेती है जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है। 50 दशकों में इन गैसों की मात्रा में अनियंत्रित रूप से बढ़ोतरी हुई है।

 प्रमुख Green House Gases : कार्बन डाई-ऑक्साईड (60%), C.F.C (क्लोरो फ्लोरो कार्बन्स/फ्रिऑन (10%), मेथेन (CH4) – (20%), जलवाष्प, ओजोन गैस, नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स, सल्फर डाई ऑक्साइड, सल्फर हेक्सा फ्लोराइड (SF6)।

  • यदि वायुमंडल में CO2 की मात्रा इसी तरह बढ़ती रही तो 1900 ई. की तुलना में 2030 ई. में विश्व के तापमान में 30C की वृद्धि हो जाएगी।
  • भूमंडलीय तापन के कारण हिम क्षेत्र पिघलेंगे जिसके परिणामस्वरूप समुद्री जलस्तर 2.5 से 3 मी. तक बढ़ जाएगा।

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