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Excretory system in hindi reet level 2 science

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Excretory system in hindi reet level 2 science
Excretory system in hindi reet level 2 science


  • सजीवों में उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप कई अनुपयोगी पदार्थ बनते रहते हैं । इन पदार्थों क्रो अपशिष्ट पदार्थ या उत्सर्जी पदार्थ कहते है । इन अनुपयोगी तथा अपशिष्ट पदाथो को शरीर से बाहर ,निष्कासित करने के जैविक प्रक्रम क्रो उत्सर्जन कहते हैं ।


       Excretory system in hindi reet level 2 science

  • NOTE - शरीर मे जल  की उचित मात्रा तथा उपयुक्त आयनो का संतुलन बनाए रखना परासरण नियम कहलाता है !

  • उत्सर्जी पदार्थप्राणियों में उपापचय द्वारा CO2, जल तथा नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ जैसे अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल इत्यादि बनते हैं । co2 व जल क्रो कुछ मात्रा को श्वसन एवं पसीने के रूप में बाहर निकाल दिया जाता है परंतु नांइट्रोजनी अपशिष्ट को जटिल रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप विशेष उत्सर्जी अंगों द्वारा बाहर निकाला जाता है।प्राणियों में उत्सर्जन तथा परासरण नियमन दोनों ही साथ साथ चलते रहते है । इन्हें संपादित करने वाले अंग तंत्र को मूत्र तत्र या उत्सर्जन तंत्र कहते है ।


नाइट्रोजनीअपशिष्ट पदाथो का निष्कासन
जीवों में नाइट्रोजनो अपशिष्ट (NH2 ) अमोनिया यूरिया व यूरिक अम्ल इत्यादि होते हैं । प्राणी इन पदाथो को अपने आवास एबं प्रकृति के अनुसार उत्सर्जित करते है ।

( 1 ) अमोनोटैलिक - प्रोटीन उपापचय का मूल अपशिष्ट पदार्थ अमोनिया होती है । यह अत्यंत विषैली एवं जल में घुलनशील होती है । वे प्राणी जिनमें नाइट्रोजनी अपशिष्ट अमोनिया के रूप मे उत्सर्जित किया जाता है, अंमौनोटैलिक कहलाते है । सरल जलीय प्राणी ही अमोनिया का उत्सर्जन करते हैं जैसे प्रोटोजोआ, पॉरीफेरा, जलीय,आर्थोंपोड्स मोलस्का एवं अलवण जलीय मछलियों आदि ।

( 2 ) यूरियोटेलिक - ऐसे प्राणी जौ उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिया का उत्सर्जन करते है। यूरिंमोटेलिक कहलाते है । यूरिया अमोनिया से या कम विषेला यौगिक है तथा इसे उत्सर्जित करने के लिए अपेक्षाकृत कम जल की आवश्यकता होती है । उदाहरण, मेंढक, उपस्थित मछलियाँ, स्तनी प्राणी (मनुष्य) आदि ।

( 3 ) युरिकोटेलिक - वे प्राणी जिनमें नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदाथो का उत्सर्जन यूरिक अम्ल के रूप में किया जाता है यूरिकोटेलिक कहलाते है । यूरिक अम्ल कम विषैला एवं जल मे लगभग अघुलनशील होता है ।अत: इसका उत्सर्जन ठोस रवों या गाढी लेई के रूप मे किया जाता है। उदाहरण - सरीसृप, कीट, पक्षी तथा स्थलीय घोंघे आदि ।

● उत्सर्जन तंत्र - मानव में नाइटोजनी अपशिष्ट पदार्थ यूरिया के निष्पादन तथा परासरण नियमन हेतु उत्सर्जी तंत्र पाया जाता है । इसमें निम्नलिखित अंग सम्मिलित होते हैं
(1) किडनी (2) मूत्र वाहिनियाँ ( 3 ) मूत्राशय

( 1 ) किडनी - मनुष्यों में मुख्य उत्सर्जी अंग एक जोडा किडनी होते है । किडनी सेम के बीज के आकार के होते है । उदरगुहा मे पीठ की और कमर के क्षेत्र में क्रशेरूक दंड के दोनों और एक एक किडनी स्थित होते है । इसके चारों और झिल्ली पायी जाती है, जिसे पेद्विटोनियम कहते हैं। 
आंतरिक रूप से किडनी दो भागों में बंटा हुआ होता है । बाहरी भाग कोर्टेक्स तथा भीतरी भाग मेडुला कहलाता है ।
मैडुला भाग शकुरूप रचनाओ मे व्यवस्थित रहता है, जिन्हे पिरेमिड्स कहते है। इन के बीच-बीच में व्रकीय नलिकाओ के हेनले के लूप तथा संग्रह नलिकाएँ पाई जाती है। पिरामिड्स एक थैलीगुहा में होता है, जिसे वक्र पेल्विस कहते हैं । प्रत्येक वक्र में लगभग 130000 सूक्ष्म नलिकाएँ होती है ।
नेफ्रोन वक्र की कार्यात्मक है इनको उत्सर्जन इकाई भी कहते है ।

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● नेफ्रोन की संरचना - नेफ्रोन एक प्याले नुमा संरचना होती है। जिसे बोमेनो सम्पुट कहते है। यह वर्क के कोर्टेक्स भाग में स्थित होता है बोमेन सम्पुट से एक कुंडलित संरचना निकलती है जो सीधा होने के पश्चात चौड़ी होकर एक पाश बनाती है, जिसे हेनली का लूप कहते है । इसके बाद कोर्टेक्स भाग में पुनः प्रवेश कर कुंडलित हो जाती है तथा एक बड़ी संग्राहक वाहक में खुलती है ।

( 2 ) मूत्र वाहिनियां - प्रत्येक वर्क से एक लंबी नलिका निकलती है जिसे मूत्र वाहिनी कहते है इसका पारम्भिक चौड़ा भाग पेल्विस कहलाता है । मूत्र वाहिनी नीचे की ओर जाकर मूत्राशय में खुलती है |

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( 3 ) मूत्राशय - यह पेशीय भित्ति युक्त धैलीनुमा अंग है जो मूत्र संचय करता है । इसमें पायी जाने चाली पेशिया अरेखित प्रकार की होती है । इसमें लगभग 700-800 मिलि. मूत्र.संचित हो सकता है । इसका अंतिम सिरा नली रूपी मूत्र मार्ग द्वारा बाहर खुलता है जहाँ से मूत्र बाहर त्याग दिया जाता है ।

● मूत्र निर्माण की क्रिया -
उत्सजर्न की कार्यिकी एक जटिल प्रक्रिया है इसे 2 प्रमुख भागो में बांटा जा सकता है ।
(A) परां निस्वंदन - किडनी में बोमन संपुट एक छलनी की तरह कार्य करता है । इसमें अभिवाही धमनिका यूरिया युक्त रूधिर लाती है और अपवाही धमनिका इससे रूधिर बाहर ले जाती है । वोमेन संपुट में अभिवाहि धमनिका बार-बार विभाजित होकर केशिकओ का एक गुच्छा बनाती है, जिसे केशिका गुच्छ कहते है । अभिवाही धमनिका, अपवाही धमनी की तुलना में अधिक व्यास की होती है अत: इसमें रुधिर तेजी से आता है लेकिन बाहर जाते समय उतनी तेजी नहीं जा पाता है । अत: ग्लोमेरूलस में रूधिर का दाब बढ़ जाता है । उच्च दाब पर इस प्रकार रूधिर के छनने की क्रिया को प्रनिस्यंदन कहते हैं । प्रनिस्यंदन द्वारा रूधिर जल, ग्लूकोस, खनिज लवण आदि छान लिया जाता है । छने हुए द्रव को निस्पंदन कहते हैं । यह निस्पंदन संपुट क्री गुहा मे एकत्रित होता जहा से यह नेफ्रांन की कुंडलित नलिका में चला जाता है। इस परा निस्यंदन के कारण रुधिर मसे कुछ उपयोगी पदार्थ भी छान लिए जाते है। परंतु अगले चरण में यह उपयोगी पदार्थ पुनः अवशोषित होकर रुधिर में मिल जाता है ।इस प्रकार के चयनात्मक निस्पंदन को डायलिसिस कहते है ।

( B ) पुनरावशोषण - बोमेन सम्पुट में छनने के बाद में रुधिर उपवाही धमनी द्वारा बाहर निकलता है ।अपवाही धमनी बाहर पुनः विभाजित होकर नेफ्रांन की नलिकाओं के चारों तरफ रूधिर केशिकाओं का जाल बनाती है । नेफ्रांन की नलिकाओ में उपस्थित निस्यंद जब नलिकाओ के विभिन्न भागों से गुजरता है तो इसमें से उपयोगी पदार्थो कों नलिकाओ के चारों ओर मौजूद रूधिर केशिकाओ द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है । इस किया कां पुनरावशोषण कहते हैं ! निस्यंद से उपयोगी पदार्थो के रूप में जल, ग्लूकोस, विटामिन, हार्मोन, खनिज-लवण इत्यादि का पुनरावशोषण होता है ।
उत्सर्जी पदार्थ ( निस्वंद ) संग्राहक नलिका मे एकत्रित होकर, पेल्विस मे जाता है, और वहाँ से मूत्र वाहिनी द्वारा मूत्राशय में जाकर एकत्र होता है, जहाँ से वह मूत्र मार्ग द्वारा समय-समय पर शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है ।

● मूत्र का संगठन एवं प्रकृति- मूत्र  पारदर्शी एवं हल्के पीले रग का द्रव होता है । इसका पीला रग यूरोक्रोम नामक वर्णक के कारण होता है । जबकि इसकी गंध इसमें अमोनिया बनने के कारण होती है । मूत्र सामान्यतया अम्लीय प्रकृति का होता है, जिसका ph 4.5 से 8.6 होता है । मूत्र मे जल ( 95 % ) यूरिया ( 2% ) प्रोटीन, वसा, शर्करा एवं कोलाइड्स( 1.3% ) , यूरिक अम्ल ( 0.5 % ) के साथ अत्यन्त अल्प मात्रा में क्रियेटिनीन, सोडियम केल्शियम मेग्नीशियम क्लोरीन, SO4, PO4, अमोनिया, सीसा आर्सेनिक आयोडीन एवं नाइट्रोजन आदि पाए जाते है।

● हिमोडायालीसिस: किडनी निष्कार्यता से ग्रसित रोगीयों को रुधिर मैं यूरिया क्री मात्रा असाधारण रूप से बढ़ जाती है । ऐसे रोगियों के रुधिर में अतिरिक्त यूरिया को निकालने में एक कृत्रिम वृक्क का इस्तेमाल किया जाता है । इस प्रक्रिया को होमोडायालिसिस कहते है ।

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Thankyou