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मनुष्यों में सूक्ष्म जीवों से फैलने वाले रोग व बचाव के उपाय - reet science notes

मनुष्यों में सूक्ष्म जीवों से फैलने वाले रोग व बचाव के उपाय - reet science notes


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Corona virus

◆ क्षय रोग -

● कारक जीव: - माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु ।

● संक्रमण - • यह मुख्य रूप से छींकने, खाँसने तथा संक्रमित हाथों को स्वस्थ व्यक्ति से मिलाने पर फैलता है ।
• छींकने पर मुँह से लार के साथ जीवाणु के बीजाणु बाहर आते है जो सफाई ना रखने पर आसपास के व्यक्तियों में फैल जाते हैं ।
• टीबी. का संक्रमण होने पर यह कम से कम 4-6 माह
तक रहता है ।

लक्षण : . इस जीवाणु द्वारा कुछ जहरीले पदार्थ जैसे ट्यूबरकुलिन स्त्रावित होते हैं जिससे मानव के शरीर में मुख्य रूप से बुखार, खाँसी, तेज साँस चलना , सीने में दर्द आदि लक्षण दिखते हैं । इन लक्षणों के आधार पर क्या moutoux परीक्षण किया जाता है , जिसमें हाथ पर सुई लगाकर अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा में जीवाणु शरीर में डाले जाते है , ' जिससे शरीर में प्रतिजैविक विकसित हो जाते है तथा 72 घटै बाद उसे पुन: देखा जाता है , यदि उस स्थान पर जलन या खुजली होती है तो टी .बी का इलाज प्रारम्भ किया जाता है । इसमें मुख्य रूप से फेफडे. प्रभावित होते हैं परन्तु हड्डी , जननांग, मस्तिष्क आदि में भी टीबी . का संक्रमण देखा जाता है ।

बचाव एवं उपचार : BCG वैक्सीन तपेदिक से बचाने के लिए नवजात शिशुओं में लगाई जाती है, जिसकी समय-समय पर बूस्टर डोज लगाकर शिशु को संक्रमण से बचाया जाता है । टीबी. होने पर निम्न दवाईयाँ मुख्य रूप से ली जाती है,
जैसै - रिमेम्पोसीन ए टी.बी. सिडैल, ऐबूटोल सी. डॉट आदी।

मनुष्यों में सूक्ष्म जीवों से फैलने वाले रोग व बचाव के उपाय - reet science notes
Bacteria
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◆ खसरा - कारक जीव : रुबयोला वाइरस

संक्रमण : यह मुख्य रूप से बच्चों में व नाक से निकलने वाले
कफ ( बलगम ) व स्त्रवण से फैलता है । गन्दगी वाले स्थानों में रहने वाले बालकों में यह बड्री तेजी से फैलता है ।

लक्षण - तेज़ ज्वर, खाँसी, जुकाम, आँखों में जलन, खिंचाव व लाल होना आदि लक्षण देखा जाता हैं । द्वितीयक लक्षणों के रूप में शरीर की त्वचा पर लाल दाने देखे जाते हैं तथा रोग बिगड़ने पर फेंफ़ड़े भी प्रभावित होते है एवं रोगी कमजोरी व शरीर में थकान महसूस करता है ।

बचाव व उपचार : मीजल्स का टिका ओर M-Vac मीजल्स का टीका 9-2 माह के बीच में शिशु को लगवाना चाहिए। दाने होने पर विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इनके झड़ने के समय संक्रमण का खतरा रहता है । संक्रमण होने पर स्वयं देसी इलाज करने के बजाय चिकित्सक की सलाह से उचित प्रतिजैविक लेना चाहिए जेसे स्टेप्टीमाइसिन आदि ।

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◆ डिप्थीरिया ( गल-घोंटू ) -

कारक जीव: corynebacterium diphtheriae
(जीवाणु) द्वारा


● संक्रमण : यह मुख्य रूप से खाँसने, छींकने, थूकने व लार के गिरने से फैलता है तथा संक्रामक रोग की श्रेणी में आता है

लक्षण - जैसा इस रोग का नाम है उतना ही यह रोग रोगी को
ख़तरनाक स्थिति में पहुँच जाता है तथा बालक का गला धुँटने लगता है । उससे पहले शिशु के गले के टॉन्सिल व जीभ के पीछे की श्लेष्मा झिल्ली में सूजन आ जाती है । इसके अलावा खाँसी, जुकाम, बुखार, शरीर में दर्द आदि लक्षण देखे जाते हैं ,तथा रक्तचाप व हदय की धडकन बढ़ जाती है ।

● बचाव एवं उपचार : इसके बचाव के लिए शिशु के ज़न्म के 6,10,14 हफ्ते का टीका लगवाना चाहिए तथा 5वे वर्ष में बूस्टर लगवाना चाहिए तथा संक्रमण होने पर चिकित्सक की राय से प्रतिजैविक जैसे ciprofloaxcin penicillin
आदि देना चाहिए ।

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◆ हैजा -

●कारक जीव: विब्रियोक्रोलेरा जीवाणु ।

●संक्रमण - यह मुख्य रूप से महाभोज आदि आयोजनों में संदूषित भोजन को खाने से फैलता है । संक्रमण मक्खियों से भी फैलता है जो खाद्य पदार्थो में जीवाणुओं को फैला कर उसे दूषित कर देती हैं ।

लक्षण - इस रोग में मुख्य रूप से छोटी आँत प्रभावित होती है। संदूषित खाद्य पदार्थ के उपयोग से उल्टी, दस्त शुरू होते है जिससे धीरे-धीरे… शरीर में अत्यधिक कमजोरी आ जाती है तथा रक्तचाप नीचे चला चाता है एवं चकर आने लगते हैं । इस प्रकार शरीर की सभी उपापचयी क्रियाएँ बन्द होने लगती है तथा कुछ परिस्थितियों में रोगी कौ मृत्यु भी हो सकती है । अन्य लक्षणों में शरीर में पानी का कम होना, खाल सिकुड़ना आदि देखा जाता है ।

बचाव व उपचार: हैजा से बचने के लिए आसपास के क्षेत्रों की सफाई रखनी चाहिए । पानी व खाने को ढककर रखना चाहिए । खुले पानी के स्त्रोतों में कीटनाशक का समय-समय पर छिडकाव करना चाहिए जिससे जीवाणु पानी में नहीं पनपें । खाद्य पदार्थ का उपयोग करने से पहले हाथ अच्छी तरह धोकर पूर्ण सफाई के साथ खाना खाएँ। लोगों को रोग से बचाने के लिए टीकाकरण ( cholera varna haffkine ) करवाना चाहिए । शरीर में अत्यावश्यक पदार्थो व जल की कमी को पूरा करने के लिए Ors का घोल पिलाना चाहिए।

◆ टायफायड -

कारक जीव : सालामोनेला टायफी

● संक्रमण : दुषित जल व खाद्य पदार्थ के उपयोग से यह एक व्यक्ति से दूमरे व्यक्ति में फैलती है ।

लक्षण - इस रोग में छोटी आँत, अमाशय तथा कभी-कभी त्वचा मुख्य रूप से प्रभावित होतो है तथा रोगी में तेज व मध्यम दर्जे का बुखार, शरीर में खिंचाव, दर्द, थकान, जुकाम, खाँसी आदि देखा जाता है । दूषित जल के अत्यधिक उपयोग से दस्त, उल्टी, जी घबराना आदि की शिकायत भी देख जा सकती है । तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर मृत्यु भी हो सकती है ।

बचाव व उपचार : यह प्रमुख रूप से गदंगी से फेलता है इसलिए इससे बचना ही इसका उपचार है, सर्वप्रथम खाने-पीने की वस्तुओं को सदैव साबुन से अच्छी तरह हाथ धोकर उपयोग में लेवें । इससे बचाव हेतु प्रतिरोधक टीका भी लगाया जाता है, जैसै - Polysaccharide Typhoid vekksin, Typlim VI, Typhoral HMR.
टाइफाइड के उपचार हेतु सामान्यत: एम्पोसिलीनं, क्लोरोमाइसिटीन आदि का उपयोग चिकित्सक की पुर्ण देख-रेख मे किया जा सकता है ।

मनुष्यों में सूक्ष्म जीवों से फैलने वाले रोग व बचाव के उपाय - reet science notes
Vaccination



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