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संस्कृत शिक्षण विधियां | sanskrit shikshan vidhi by utkarsh classes

 संस्कृत शिक्षण विधियां :-

-  व्याकरणम् = वि + आङ् + कृ + ल्युट्

   व्याक्रियन्ते = व्युत्पाद्यन्ते शब्दा: अनेन इति व्याकरणम्।
-  वैयाकरण = व्याकरण शब्द + अण् प्रत्यय
-  व्याकरण को वेदों का मुख भी कहा जाता है।
-  महर्षि पतञ्जलि ने अपने ग्रन्थ महाभाष्य में व्याकरण को शब्दानुशासनम् भी कहा है।
-  व्याकरण के त्रिमुनि –

 (i) पाणिनि             -           सूत्रकार  -          अष्टाध्यायी
 (ii) कात्यायन (वररुचि) -      वार्तिककार  -       वार्तिकानि
 (ii) पतञ्जलि         -           महाभाष्यकार -    महाभाष्य

संस्कृत शिक्षण विधियां | sanskrit shikshan vidhi by utkarsh classes
संस्कृत शिक्षण विधियां | sanskrit shikshan vidhi by utkarsh classes

संस्कृत शिक्षण विधियां | sanskrit shikshan vidhi by utkarsh classes

व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य

-  छात्रों को ध्वनितत्वों, भाषातत्वों, शब्दरूप, धातुरूप इत्यादि का ज्ञान कराना।
-  अनुस्वार – विसर्ग – हलन्त – अच् – हल्  ध्वनियों एवं अयोगवाहों इत्यादि का ज्ञान कराना।
-  छात्रों में तर्कशक्ति का विकास कराना।

पाठयोजना के प्रमुख बिन्दु 

1.      औपचारिक बिन्दु

(i) अध्यापक का नाम ………………………
(ii) कक्षा ……………………………………
(iii) दिनांक…………………………………..
(iv) प्रकरण………………………………….
(v) उपकरण………………………………….
(vi) कालांश………………………………….
(vii) विषय……………………………………

2.      सामान्य उद्देश्य

(i) ज्ञानात्मक उद्देश्य
(ii) अर्थग्रहणात्मक उद्देश्य
(iii) अभिव्यक्ति सम्बन्धी उद्देश्य
(iv) अभिवृत्ति सम्बन्धी उद्देश्य
(v) अभिरूचि सम्बन्धी उद्देश्य

3.      सहायक सामग्री

(i) श्यामपट्‌ट
(ii) मार्जनी (डस्टर)
(iii) सुधाखण्ड (चॉक)
(iv) चार्ट
(v) प्रतिकृति (मॉडल)
(vi) पाठ्यपुस्तकानि
(vii) चलदूरभाष (मोबाइल)

 

4.      पूर्वज्ञानपरीक्षणम् (पूर्वाज्ञानम्)……………..

5.      उद्देश्यकथनम् ……………………………

6.      प्रस्तावना प्रश्नानि

(i) ज्ञात से अज्ञात की ओर
(ii) सरलता से कठिनता की ओर
(iii) तीन अथवा चार प्रश्न
(iv) अन्तिम प्रश्न-समस्यात्मक प्रश्न

7.      प्रस्तुतीकरणम्/विषयोपस्थापनम्

        8.     बोधप्रश्ना:
         -    अध्यापक पढ़े गए पाठ में से कुछ प्रश्न छात्रों से पूछता है।

        9.     मौनवाचनम्-

       10.     पुनरावृत्ति/मूल्यांकनप्रश्ना:
        -    छात्रों को पाठ का अधिग्रहण हुआ है या नहीं, इसके परीक्षण के लिए अध्यापक        पुनरावृत्ति अथवा मूल्यांकन प्रश्न पूछता है।

  11.    गृहकार्यम्

व्याकरण – शिक्षण की विधियाँ

व्याकरण शिक्षण की कितनी विधियां होती हैं?

व्याकरण शिक्षण बहुत सी महत्वपूर्ण व्याकरण शिक्षण विधियां होती है जिनसे से ये सबसे महत्वपूर्ण विधियां है -

-  सूत्र अथवा कण्ठस्थीकरण विधि
-  परायण विधि
-  अव्याकृत विधि
-  अनौपचारिक विधि
-  व्याख्या विधि
-  समवायविधि

व्याकरण विधि के जनक कोन है? -  भण्डारकर विधि (व्याकरणानुवाद विधि) – डॉ. रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर

-  आगमन – निगमन विधि – (नवीनतम विधि)

1. सूत्रविधि या कण्ठस्थीकरण विधि

-  इसे परम्परागत विधि/प्राचीन विधि या पाण्डित्य विधि भी कहा जाता है।
-  पाणिनि एवं कात्यायन के द्वारा स्वीकृत विधि।
-  इसमें सूत्रों के कण्ठस्थीकरण पर बल दिया जाता है।
-  रटने पर बल देने के कारण अमनोवैज्ञानिक विधि है।
-  सामान्य से विशिष्ट की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित विधि है।
-  सूत्र मुख्यत: छह प्रकार के होते है :-

            (i) संज्ञा सूत्र        (ii) परिभाषा सूत्र
            (iii) विधि सूत्र      (iv) नियम सूत्र
            (v) अतिदेश सूत्र  (vi) अधिकार सूत्र

2. परायण विधि

-  यह विधि प्राचीन विधि है।
-   इसमें वैदिक मन्त्रों अथवा व्याकरणिक सूत्रों का परायण किया जाता है।
-  वैदिक मंत्रों का सरस्वर पाठ परायण कहलाता है।
-  इसमें कण्ठस्थीकरण पर बल दिया जाता है।
-  यह विधि ‘पाणिनि’ के समय प्रचलन में आई।
-  इस विधि में शिक्षक पूर्णरूप से निष्क्रिय रहता है, अत: यह विधि अमनोवैज्ञानिक है।
-  पंचम, सप्तक आदि परायण के प्रकार है।
-  ब्रह्मचारी पूर्व दिशा की ओर मुख करके परायण करते थे।

3. अव्याकृतविधि (भाषा संसर्ग विधि)

-  यह विधि अभ्यास पर बल देती है।
- इसमें व्याकरण के नियमों के बिना भाषा को समझाया जाना।
- मातृभाषा शिक्षण हेतु सर्वाधिक उपयोगी विधि।
- उच्चारण एवं अभ्यास तथा प्रयोग के माध्यम से भाषा (व्याकरण) का ज्ञान प्रदान करना।

4. अनौपचारिक – विधि

-        संस्कृत सम्भाषण एवं प्रयोग के माध्यम से संस्कृत भाषा का ज्ञान अनौपचारिक रूप से दिया जाता है।

5. व्याख्या विधि

-   यह विधि प्राचीन विधि है।
-   महर्षि पतञ्जलि ने ‘महाभाष्य’ में इसी विधि का अनुसरण किया है।
-  इसमें भाषा के सैद्धान्तिक पक्ष की उपेक्षा एवं व्यावहारिक पक्ष पर बल दिया गया है।
-  यह विधि निगमन विधि के समकक्ष मानी गई है।
-  इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों की व्याकरण जनित कठिनताओं का निवारण करना एवं स्पष्ट ज्ञान कराना।
-  व्याख्या के 4 पक्ष हैं –
           (i) चर्चा
           (ii) उदाहरण
           (iii) प्रत्युदाहरण
           (iv) वाक्याध्याहार

6. व्याकरणानुवादविधि:

-  प्रवर्तक – रामकृष्ण गोपाल भण्डारक
-  उपनाम – भण्डारकर विधि
- अनुवाद एवं शब्दकोष में अभिवृद्धि पर बल दिया गया है।
-  इसमें संस्कृत से अंग्रेजी एवं अंग्रेजी से संस्कृत अनुवाद पर बल दिया गया, अत:      इस  विधि को व्याकरणानुवाद विधि कहा जाता है।
-  भण्डारकर की दो प्रसिद्ध पुस्तकें –
       1. मार्गोपदेशिका
       2. संस्कृतमन्दिरान्त: प्रवेशिका

7. समवाय – विधि

-  इस विधि में व्याकरण का नियमित अध्यापन नहीं होता अपितु प्रसङ्ग आने पर यथा स्थान दिया जाता है।
- इसका दोष यह है कि इसमें व्याकरण का क्रमिक ज्ञान नहीं हो पाता है।  

8. आगमन – निगमन विधि

- व्याकरण शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है।
- इस विधि के दो सोपान है-
1. आगमन विधि
2. निगमन विधि
-  पूर्व में आगमन एवं तत्पश्चात् निगमन विधि से शिक्षण कार्य होता है।

.1. आगमन विधि

- इस विधि में उदाहरण से नियम की ओर बढ़ा जाता है।
- इसमें विशिष्ट (उदाहरण) का अध्ययन या तुलना करके सामान्य का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
- इस विधि में शिक्षण एवं छात्र दोनों की सक्रियता होती है।

आगमन विधि के अन्तर्गत विभिन्न शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है –

     (i) उदाहरणाद् नियमं प्रति
     (ii) ज्ञाताद् अज्ञातं प्रति
     (iii) विशिष्टाद् सामान्यं प्रति
     (iv) स्थूलाद् सूक्ष्मं प्रति
     (v)  मूर्ताद् अमूर्तं प्रति
     (vi)  सरलाद् कठिनं प्रति

आगमन विधि के सोपान

- आगमन विधि के 4 सोपान है –
      (i) उदाहरण प्रस्तवन – उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण (शिक्षकेन)
      (ii) निरीक्षणम् (तुलनात्मक) –   (छात्रों के द्वारा)
      (iii) नियमनिर्धारणम् -              (शिक्षक के द्वारा)
      (iv) परीक्षणम्           -             (छात्र/शिक्षक के द्वारा)


-  यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुकूल है, तथा यह सरल एवं स्वाभाविक विधि हैं।


-  इसमें छात्रों को कण्ठस्थीकरण की आवश्यकता नहीं रहती है।
-  अत: यह व्याकरण शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि मानी गई है।

व्याकरण शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि कौन सी है?

व्याकरण शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि आगमन निगमन विधि को मानी जाती है ।

2.  निगमन विधि 

- यह विधि नियम से उदाहरण की ओर अग्रसर होती है।
- यह विधि आगमन के विपरीत विधि।
-  उच्च स्तर हेतु उपयोगी ।
-  कण्ठस्थीकरण पर बल देती।
-  अमनोवैज्ञानिक विधि है।


-  इस विधि में शिक्षक पहले नियम (सूत्र) एवं सिद्धान्तों को समझाता है तथा उसके पश्चात् उदाहरणों का स्पष्टीकरण किया जाता है।
-  जोसफ लेण्डन ने इस विधि को परिष्कृत किया एवं सूत्रविधि अथवा लक्षणविधि भी कहा जाता है।    

इस विधि में निम्न शिक्षण सूत्रों का अनुसरण किया जाता है।

  (i) नियमाद् उदाहरणं प्रति।
  (ii) सामान्याद् विशेषं प्रति।
  (iii) अज्ञाताद् ज्ञातं प्रति।
  (iv) सूक्ष्माद् स्थूलं प्रति।
  (v) अमूर्ताद् मूर्तं प्रति।
  (vi) कठिनाद् सरलं प्रति।

निगमन विधि के 4 सोपान है-

   (i) नियम बोधनम् – शिक्षक द्वारा
   (ii) नियमस्पष्टीकरणम् – शिक्षक द्वारा
   (iii) नियम परीक्षणम् – शिक्षक द्वारा
   (iv) सत्यापन (परीक्षण) – छात्र एवं शिक्षक द्वारा
आगमननिगमन विधि व्याकरण शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है।
- इस विधि में पहले आगमन विधि से शिक्षण होता है एवं तत्पश्चात् निगमन विधि से शिक्षण होता है।


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